Braj Ki Boli

Friday, 1 December 2017

Braj ke mandaliy prateek

Braj ke mandaliy prateek

Braj ke Mandaliy Prateek-

कदम्ब कौ पेड़ (cadamba) : Brajbhasha-
कदम्ब कौ पेड़ ब्रज में सब पेड़न में लोक प्रिय ऍह |
भगवान कृष्ण कूँ अति प्यारौ लगतौ ऍह |
जब गेंद निकारबे कूँ बिन नै यमुना में छलांग लगाई हती,तौ बू कदम्ब कौ ई पेड़ हत कहियो |
आजकल नौघरेन (नयौ घर या वाड़ा ) में कहूँ -कहूँ मिल जामतौ ऍह |
गोपिकान के वस्त्र हरण करे हते, तबऊ कदम्ब के पेड़ कौ ही बर्णन मिलतौ ऍह |
वैसे कदम्ब के पेड़ के पत्ता और बीजन ते ” इत्र ” बनायौ जामतौ ऍह |
या की पत्ती,छाल,फल कूँ समान मात्रा मे लेंकैं काढ़ौ पीबे ते टाईप २ डायाबिटीज ठीक है जामतै |
कभऊ-कभऊ औरतें ऊ सिंगार के रूप में प्रयोग करतें |
Image result for kadamb

गैया-
ब्रज में “गैया” (गइया ) ऐसौ जानवर ऍह, जाय माँ के रूप में देखौ जामतौ ऍह |
ई कृष्ण की अति प्यारी चीजन में ते एक ऍह |
या में (गइया में ) सबरे देवतान कौ वास बतामत कहियें, ऐसौ पुराणन में लेख मिलतौ ऍह |
अन्य जानवरन की तुलना में ई सब ते उत्तम दूध दैमतै |
वैदिक काल ते ई “गइया” कौ बड़ौ ई महत्व रह्यौ ऍह |
गइयाँन की भारत में ३० ते ऊ ज्यादा नस्ल पायी जामतें |
विश्व में गइयाँन की कुल संख्या १३ खरब (1.3 बिलियन) हैबे कौ अनुमान ऍह, बिन में ते भारत में 281,700,000 (२८ करोड़ ते ज्यादा ) एन्ह |
गइयाँन राखबे भारत कौ 5 मौ स्थान ऍह |
ब्रज भूमि में “गइया मैया” की सब ते ज्यादा गऊशाला हैं |
Image result for cow
मोरा-
ब्रज कौ सबसे प्रसिद्द पक्षी “मोरा” ऍह |
ब्रज मोरा सबेरे-सबेरे (धौंताय) कुक्यामते भये देखे जा सकतैं |
देखबे में बहौतई मलूक लगतें |
कृष्णा अपने मुकुट में “मोरपंख” राखत हते (हत कइये )|
कृष्णा कन्हैया कूँ बड़े प्यारे लगत हत कइये “मोरा पक्षी” , ऐसौ पुराण में बर्णन मिलतौ ऍह |
मोरा एक ऐसौ पक्षी ऍह जो सम्भोग करे ई बिना, आँसूँन नै मोरनी कूँ पिलबा कैं अपनी संतान उत्पत्ति करबामतौ ऍह |
ई काम बू तब करतौ ऍह जब नाचतौ ऍह |
Image result for peacock
पारंपरिक रहबे , बिछाबे, फटकबे , रखबे के संसाधन –
पुराने समय ते ई काँस (एक प्रकार की घास ),डाब (जटिल घास ), सरपते,बिनडॉरी आदिन कौ बड़ौ ई महत्व रह्यौ हतै |
1-बोइया (काँस तेरोटी रखबे बारौ डिब्बा ),
2-सूप (फटकबे के लें बिनडॉरी की सिरकीन ते बनामतैं)
3-ईंड़ई (ई डाब ते बनतै,और बोझ उचबे कूँ सिर के नीचें लगामतैं )
4-बुर्जी और बिटौरा की छान (इन्नै बनाबे कूँ बिनडॉरी कौ प्रयोग हैमतौ ऍह)
5-छप्पर (छप्पर छायबे कूँ बिनडॉरी के पत्ता (सरपतेन )कौ प्रयोग हैमतौ ऍह )

संबंधित लिंक...

साभार:- ब्रजवासी 


ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

-----------------------------------------------------------------

सौभरि ब्राह्मणों से सम्बंधित प्रश्न
श्री दाऊजी मंदिर
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।


at December 01, 2017 No comments:
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest
Labels: Braj Ke Mandaliy Prateek chinh

LEARN BRAJBHASHA QUOTES 2

Skip to content

Learn BrajBhasha Quotes 2




November 15, 2017 omanpandey brajbhasha, brajkiboli, Languagesbrahbhasha quote,brajkiboli quotes, Learn Brajbhasha quotes, learnbrajbhasha

1460207_613894908749069_8266358644392754070_n1910064_586458871492673_5279096088866134168_n1917450_613895535415673_4775992370763241838_n10609682_585210081617552_7237537067600937810_n11953196_549024091902818_6565383727818430623_n11988697_549525615185999_4200584373399166708_n12003902_553705764767984_6552530276890853592_n12019828_556021097869784_4557763786772891684_n12036540_556022224536338_8486982126491940012_n12096165_614254715379755_8663215048164924157_n12112306_563146460490581_620638427696964722_n12115970_563148767157017_5846904101106930836_n12141513_563144977157396_5438003426799958412_n12141668_563145103824050_7717576047097988141_n12274353_570386846433209_8218716293888406984_n12417962_586707401467820_5063085952504525055_n12565484_592124514259442_5248131700649371648_n12743688_604171066388120_6458111438345317865_n14064282_679018605570032_6973321312321071964_n14067616_679022678902958_1961036860516904270_n14068173_679021212236438_6698343811499494700_n14095781_677630842375475_607480508846559181_n14102134_679442002194359_4744240032071171699_n14102401_679030758902150_625253769272517654_n14212115_686542764817616_3706832371149101849_n14358904_693087660829793_9046088055906160089_n14725602_709230592548833_9127878183135349287_n15726946_745475148924377_8905775206443932391_n15823067_748295771975648_5407914146672869393_n15823582_749214301883795_7004766614262392587_n17523492_794884110650147_8037663031954274125_n17796149_796033023868589_322264352965076679_n17799146_794885213983370_830424145957969053_n19989265_850892271715997_904808743340730893_n20882288_871514222987135_636993628784053977_ni

संबंधित लिंक...

साभार:- ब्रजवासी 


ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

-----------------------------------------------------------------

सौभरि ब्राह्मणों से सम्बंधित प्रश्न
श्री दाऊजी मंदिर
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।


at December 01, 2017 No comments:
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest
Labels: Brajbhasha Quotes
Location: India

Saturday, 9 September 2017

Sanjhi Is A Traditional Art Form Of Northern India,Mainly In Braj region

Sanjhi is a Art Festival

 सांझी पर्व-   (हिंदी/English में )


'सांझी पर्व' (झांजी ) राजस्थान, गुजरात, ब्रजप्रदेश,  पंजाब,हरियाणा  तथा  अन्य कई क्षेत्रों में कुवांरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है जो भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक अर्थात पूरे श्राद्ध पक्ष में सोलह दिनों तक मनाया जाता है। सांझे का त्यौहार कुंवारी कन्याएं अत्यंत उत्साह और हर्ष से मनाती हैं।

सांझी का मतलब है सज्जा, श्रृंगार या सजावट |वैदिक काल से ही यज्ञ या दूसरे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए फर्श और दीवारों को  रंगों से साज-सज्जा करने की परंपरा रही है | पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा के मानस पुत्र पीललम ऋषि की पत्नी 'सांझी' थी, जिसे मां दुर्गा भी कहते हैं।   घर के बाहर, दरवाजे पर दीवारों पर कुंवारी लड़कियां  गाय का गोबर लेकर विभिन्न आकृतियां बनाती हैं। उन्हें फूल पत्तों, मालीपन्ना सिन्दूर आदि से सजाती हैं और प्रतिदिन शाम को उनका पूजन करती हैं और  घर-घर जाकर संझादेवी के गीत गाती हैं एवं प्रसाद वितरण करती हैं। प्रसाद ऐसा बनाया जाता है जिसे कोई ताड़ (बता) न सके, जिस कन्या के घर का प्रसाद ताड़ नहीं पाते उसकी प्रशंसा होती है। 

विसर्जन-
अंत के पाँच दिनों में हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। सोलह दिन के पर्व के अंत में अमावस्या को संझा देवी को विदा किया जाता है।

ब्रज में इसका अलग ही रूप विकसित हुआ है, सांझी देखने में रंगोली जैसी लगती है |
शाम के वक्त श्रीकृष्ण, जब राधा से मिलने आया करते थे, वह उन्हें रिझाने के लिए फूलों से तरह-तरह की कलाकृतियां बनाया करती थीं। जब श्रीकृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए, तब भी श्रीराधा उनके साथ बिताए गए पलों की याद में इस तरह की पेंटिंग्स बनाया करती थीं।
मान्यता यह भी है कि सांझी शब्द दरअसल सांझ से बना है, जिसका अर्थ है शाम। ब्रज में “सांझी” शाम को ही बनाई जाती है।
 इस कला का ब्रज से बड़ा गहरा नाता है, यह  श्रीकृष्ण और श्रीराधा के अटूट प्रेम को दर्शाने के लिए बनाई जाती है।

सांझी के रूप-
1. फूलों की सांझी
2. गोबर सांझी
3. सूखे रंगों की सांझी
4. पानी के नीचे सांझी
5. पानी के ऊपर सांझी

मथुरा और वृंदावन के आसपास सांझी के कई रूप देखने को मिलते हैं। सूखे रंगों की सांझी, पानी के अंदर या सरफेस पर बनने वाली संझी देखने को मिल जाती है। ब्रज के ग्रामीण इलाकों में गोबर से भी सांझी बनाई जाती है।
वर्तमान स्थिति-
एक वक्त था जब ब्रज के घर-धर में सांझी बनाई जाती थी मगर आज सांझी विलुप्त होने की कगार पर खड़ी है। ब्रज में एकमात्र "श्री राधा रमण मंदिर" ही ऐसा है, जहां पर सांझी बनाई जाती है।



********************************************************************************

  { Brajbhasha- कनागत आमतई गांमन में "झांजी" (गोबर ते बनी भई कलाकारी ) बनाबे कौ सिलसिलौ शुरू है जामतौ ऍह |ई बहौतई पुरानी रीति ऍह जो कैऊ सदींन ते चली आ रई ऍह |
या के बारे में में लोक-गीत बड़ौ ई प्रसिद्ध ऍह-

1- झांजी-झांजी जैं लै,
काह जैंमैंगी गुड्बट्टा |
गुड्बट्टा तो कूं कांह ते लाऊँ,
रांड बनैनी नाँय देगी
पल्लौ बनिया भागगौ ||
और या के अलावा कैऊ और गीत हते |
2- केसुरा-केसुरा घंटार बजइयो,
दस नगरी दस गाम बसाइयो ........
(अरै बचपन कछु याद आयी कै नाँय ???) }

3- ऐसी दुंगा दारी के चमचा की, 
काम करउंगा धमका से |
 मैं बैठूंगा गद्दी  पै, 
 बाय बैठऊंगा खूंटी पै  ||  
*********************************************************************************


Sanjhi Art – The stencil art of India


Sanjhi  is a traditional art form, prevalent in many parts of India , especially in Rajasthan, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana, Punjab and  also prevalent in Maharashtra and Goa .

Unmarried girls in rural Areas , make an image of mother goddess by mud or dung paste , Turmeric, Wheat flour, Glass pieces, Panni, Gota, Kaudi, Coloured powders, Flowers, Banana leaves, etc. and worshiped. Figures of peacock, elephant, horse etc. are also made with cow dung or paper.
Sanjhi is made from the patripada to amavasya of Ashwin for fifteen days after that pots are taken for immersion to the nearby ponds.

 The word Sanjhi literally means the time of dusk and is derived from the Hindi word ‘Sanjh’ or ‘Sandhya’. ‘Sanjhi Puja’ is mainly the worship of Mother Goddess Durga.
A common thread runs throughout India and festivals have the similar philosophy behind them. Only the style varies from place to place. Even days coincide. The images of Sanjhi are suggestive of Durga, Uma and Katyayani.

Origin of Sanjhi Art-

When Radha in her heart wanted to marry to Shri Krishna,  they started making of Sanjhi for remembering lord krishna. After making of the images food was offered to them in the evening that was followed by an Aarti.
Earthen lamps are lighted and gathering of spinsters around the Sanjhis by holding such lamps takes place in the evening. They sing traditional devotional songs in Chorus with a view to propitiate Mother Goddess. The first song is sung in order to ask Mother Goddess about her necessities regarding eatables and daily wear, etc. In the next song the girls swear to pacify her by the providing her with the necessities. Sacred food is being offered to the Goddess.
On immersion time the vessels are hit with cudgels by the village youth to stop the bowls from reaching the other end in the pond . A legend says that none of the bowls should float across the pond and touch the other end, otherwise misfortune would fall on the village.

A Song of the Sanjhi festivals are-

Sanjhi sanjha he kanagat parli paar,
dekhan chalo hai sanjha ke lanihar!

The Braj Foundation efforts reviving the lost glory of Braj Art "Sanjhi" Every Year.


ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा

संबंधित लिंक...

सौभरि ब्राह्मणों से सम्बंधित प्रश्न
श्री कल्याण देवाचार्य
सौभरि कथा
श्री दाऊजी मंदिर
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।

संबंधित लिंक...

साभार:- ब्रजवासी 


ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

-----------------------------------------------------------------

सौभरि ब्राह्मणों से सम्बंधित प्रश्न
श्री दाऊजी मंदिर
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।




at September 09, 2017 No comments:
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest
Labels: Sanjhi, सांझी कला
Newer Posts Older Posts Home
Subscribe to: Posts (Atom)

Featured post

Learn BrajBhasha Sentences

Learn BrajBhasha Sentences In Market- Hindi – भारतीय बाजारों में दालों के भाव अभी तो गिरने का नाम ही नही ले रहे हैं | BrajBhasha -भ...

Search This Blog

Total Pageviews

About Me

My photo
Omprakash Sharma
View my complete profile

Blog Archive

  • ►  2021 (4)
    • ►  October (2)
    • ►  August (1)
    • ►  June (1)
  • ►  2019 (2)
    • ►  December (1)
    • ►  November (1)
  • ►  2018 (1)
    • ►  January (1)
  • ▼  2017 (4)
    • ▼  December (2)
      • Braj ke mandaliy prateek
      • LEARN BRAJBHASHA QUOTES 2
    • ►  September (2)
      • Sanjhi Is A Traditional Art Form Of Northern Indi...

Labels

  • Braj Ke Mandaliy Prateek chinh
  • Brajbhasha Quotes
  • Learn BrajBhasha Quotes
  • Sanjhi
  • सांझी कला
  • Home

Followers

Simple theme. Powered by Blogger.