Sanjhi is a Art Festival
सांझी पर्व- (हिंदी/English में )
'सांझी पर्व' (झांजी ) राजस्थान, गुजरात, ब्रजप्रदेश, पंजाब,हरियाणा तथा अन्य कई क्षेत्रों में कुवांरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है जो भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक अर्थात पूरे श्राद्ध पक्ष में सोलह दिनों तक मनाया जाता है। सांझे का त्यौहार कुंवारी कन्याएं अत्यंत उत्साह और हर्ष से मनाती हैं।
सांझी का मतलब है सज्जा, श्रृंगार या सजावट |वैदिक काल से ही यज्ञ या दूसरे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए फर्श और दीवारों को रंगों से साज-सज्जा करने की परंपरा रही है | पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा के मानस पुत्र पीललम ऋषि की पत्नी 'सांझी' थी, जिसे मां दुर्गा भी कहते हैं। घर के बाहर, दरवाजे पर दीवारों पर कुंवारी लड़कियां गाय का गोबर लेकर विभिन्न आकृतियां बनाती हैं। उन्हें फूल पत्तों, मालीपन्ना सिन्दूर आदि से सजाती हैं और प्रतिदिन शाम को उनका पूजन करती हैं और घर-घर जाकर संझादेवी के गीत गाती हैं एवं प्रसाद वितरण करती हैं। प्रसाद ऐसा बनाया जाता है जिसे कोई ताड़ (बता) न सके, जिस कन्या के घर का प्रसाद ताड़ नहीं पाते उसकी प्रशंसा होती है।
विसर्जन-
अंत के पाँच दिनों में हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। सोलह दिन के पर्व के अंत में अमावस्या को संझा देवी को विदा किया जाता है।
ब्रज में इसका अलग ही रूप विकसित हुआ है, सांझी देखने में रंगोली जैसी लगती है |
शाम के वक्त श्रीकृष्ण, जब राधा से मिलने आया करते थे, वह उन्हें रिझाने के लिए फूलों से तरह-तरह की कलाकृतियां बनाया करती थीं। जब श्रीकृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए, तब भी श्रीराधा उनके साथ बिताए गए पलों की याद में इस तरह की पेंटिंग्स बनाया करती थीं।
मान्यता यह भी है कि सांझी शब्द दरअसल सांझ से बना है, जिसका अर्थ है शाम। ब्रज में “सांझी” शाम को ही बनाई जाती है।
इस कला का ब्रज से बड़ा गहरा नाता है, यह श्रीकृष्ण और श्रीराधा के अटूट प्रेम को दर्शाने के लिए बनाई जाती है।
सांझी के रूप-
1. फूलों की सांझी
2. गोबर सांझी
3. सूखे रंगों की सांझी
4. पानी के नीचे सांझी
5. पानी के ऊपर सांझी
मथुरा और वृंदावन के आसपास सांझी के कई रूप देखने को मिलते हैं। सूखे रंगों की सांझी, पानी के अंदर या सरफेस पर बनने वाली संझी देखने को मिल जाती है। ब्रज के ग्रामीण इलाकों में गोबर से भी सांझी बनाई जाती है।
वर्तमान स्थिति-
एक वक्त था जब ब्रज के घर-धर में सांझी बनाई जाती थी मगर आज सांझी विलुप्त होने की कगार पर खड़ी है। ब्रज में एकमात्र "श्री राधा रमण मंदिर" ही ऐसा है, जहां पर सांझी बनाई जाती है।
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{ Brajbhasha- कनागत आमतई गांमन में "झांजी" (गोबर ते बनी भई कलाकारी )
बनाबे कौ सिलसिलौ शुरू है जामतौ ऍह |ई बहौतई पुरानी रीति ऍह जो कैऊ सदींन
ते चली आ रई ऍह |
या के बारे में में लोक-गीत बड़ौ ई प्रसिद्ध ऍह-
1- झांजी-झांजी जैं लै,
काह जैंमैंगी गुड्बट्टा |
गुड्बट्टा तो कूं कांह ते लाऊँ,
रांड बनैनी नाँय देगी
पल्लौ बनिया भागगौ ||
और या के अलावा कैऊ और गीत हते |
2- केसुरा-केसुरा घंटार बजइयो,
दस नगरी दस गाम बसाइयो ........
(अरै बचपन कछु याद आयी कै नाँय ???) }
3- ऐसी दुंगा दारी के चमचा की,
काम करउंगा धमका से |
मैं बैठूंगा गद्दी पै,
बाय बैठऊंगा खूंटी पै ||
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Sanjhi Art – The stencil art of India
Sanjhi is a traditional art form, prevalent in many parts of India , especially in Rajasthan, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana, Punjab and also prevalent in Maharashtra and Goa .
Unmarried girls in rural Areas , make an image of mother goddess by mud or dung paste , Turmeric, Wheat flour, Glass pieces, Panni, Gota, Kaudi, Coloured powders, Flowers, Banana leaves, etc. and worshiped. Figures of peacock, elephant, horse etc. are also made with cow dung or paper.
Sanjhi is made from the patripada to amavasya of Ashwin for fifteen days after that pots are taken for immersion to the nearby ponds.
The word Sanjhi literally means the time of dusk and is derived from the Hindi word ‘Sanjh’ or ‘Sandhya’. ‘Sanjhi Puja’ is mainly the worship of Mother Goddess Durga.
A common thread runs throughout India and festivals have the similar philosophy behind them. Only the style varies from place to place. Even days coincide. The images of Sanjhi are suggestive of Durga, Uma and Katyayani.
Origin of Sanjhi Art-
When Radha in her heart wanted to marry to Shri Krishna, they started making of Sanjhi for remembering lord krishna. After making of the images food was offered to them in the evening that was followed by an Aarti.
Earthen lamps are lighted and gathering of spinsters around the Sanjhis by holding such lamps takes place in the evening. They sing traditional devotional songs in Chorus with a view to propitiate Mother Goddess. The first song is sung in order to ask Mother Goddess about her necessities regarding eatables and daily wear, etc. In the next song the girls swear to pacify her by the providing her with the necessities. Sacred food is being offered to the Goddess.
On immersion time the vessels are hit with cudgels by the village youth to stop the bowls from reaching the other end in the pond . A legend says that none of the bowls should float across the pond and touch the other end, otherwise misfortune would fall on the village.
A Song of the Sanjhi festivals are-
Sanjhi sanjha he kanagat parli paar,
dekhan chalo hai sanjha ke lanihar!
The Braj Foundation efforts reviving the lost glory of Braj Art "Sanjhi" Every Year.
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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